कलकल छलछल बहती गंगा सिर्फ नदी नहीं, भारत में गंगा मां है। वैज्ञानिक इसे समझ पाते और इतिहासकार शब्द दे पाते, इसके बहुत पहले से मां गंगा ने भारतीय सभ्यता संस्कृति को पाला पोसा है. गंगोत्री ले लेकर गंगा सागर तक करोड़ों लोगों के विश्वास, आस्था और जीवन का प्रतीक है गंगा. जन्म से लेकर मरण तक हरेक भारतवासी के जीवन का अटूट हिस्सा है मां गंगा. इसकी एक बूंद मात्र जीवन को शुभ करने के लिए काफी है, शायद इसलिए इसे भारत की जीवन रेखा कहते है.
वैसे तो गंगा उत्तर से पूरब की तरफ बहती है, लेकिन बिहार के सिमरिया में गंगा उत्तरायनी हो जाती है यानी कुछ दूर के लिए ये उत्तर की ओर बहती हैं जो इसकी पवित्रता को और बढ़ा देता है. गंगा की चौड़ाई यहां देखते ही बनती है. लगता है जैसे नदी नहीं हो सागर हो गयी हो. सिमरिया में बहती गंगा की धार में कुछ ऐसा सम्मोहन है कि आप आकर्षित हुए बिना नहीं रहेंगे. लोग कहते हैं कि सिमरिया घाट की महानता काशी से कम नहीं है. वेद पुराणों की बात करें तो किसी समय ये स्थान शाल्मली वन के नाम से जाना जाता था जो बाद में सिमरिया हुआ. रुद्रयामल तंत्र और बाल्मिकी रामायण में मिथिला के इस इलाके को समुद्र मंथन की भूमि बताया गया है. साथ ही इसका स्पष्ट जिक्र है कि इसी स्थान पर देवताओं के बीच अमृत वितरण हुआ. इस रूप में ये कुंभ की जननी स्थली हो गयी और तुला राशि में लगने वाले पहले प्रथम कुंभ की स्थली भी सिमरिया ही थी.
भारत में कुंभ
कुम्भ फिलहाल देश में 4 जगहों पर लगता है- हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नाशिक, लेकिन संत समाज का कहना है की अगर स्कन्द पुराण और रुद्रयामल तंत्र को ठीक से पढ़ा जाये तो उसमे भारत में 12 स्थानों पर कुम्भ के आयोजित होने का वर्णन है. वैदिक काल में बिहार के सिमरिया, असम के गुवाहाटी, हरियाणा के कुरुक्षेत्र, ओडिसा के जगन्नाथपूरी, पश्चिम बंगाल के गंगा सागर, गुजरात के द्वारिकाधीश, तमिलनाडु के कुम्भकोणम और रामेश्वरम में कुम्भ लगने का वर्णन हैं, लेकिन, लगातार विदेशी आक्रमणकारियों का दंश झेलते भारत में कई जगहों पर कुंभ की धार्मिक व संस्कृकित परम्पराएँ लुप्त हो गयीं क्योंकि उनका हमला लोगों के साथ धर्म पर भी था.
स्वामी चिदात्म्नजी महाराज
अब सिमरिया ने पहल कर दी है लुप्त हुई परम्पराओं को जीवित करने की. परम पूज्य करपात्री अग्निहोत्री स्वामी चिदात्म्नजी महाराज की प्रेरणा से सिमरिया में पुनः अर्धकुम्भ के आयोजन का संकल्प लिया गया है. उनके मुताबिक हिंदू समाज और देश के लिए ये बहुत जरूरी है की कुम्भ उन जगहों पर दोबारा लगे जहाँ वो वैदिक काल में लगता रहा है.
करपात्री अग्निहोत्री स्वामी चिदात्म्नजी महाराज को बिहार में एक महान योगी का दर्जा लोगों ने दिया हुआ है. योग विद्या, वेद, वैदिक रीति रिवाज, हिंदू परम्पराओं और तंत्र में उनकी बेहद बारीक पकड़ है. बाल ब्रह्मचारी स्वामी चिदात्म्नजी महाराज ध्यान की गहराइयों में उत्तर चुके हैं. आज पश्चिम जगत जिस समाधि के रास्तों को तलाश रहा है, स्वामी चिदात्म्नजी महाराज उसमें पूर्ण हैं. लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलाना, दिन दरिद्रों की मदद करना उनके आश्रम की पहचान है.
सर्वमंगला आश्रम
सिमरिया घाट पर स्थित सिद्धाश्रम कालीपीठ के सर्वमंगला आश्रम में आज बच्चों को मुफ्त शिक्षा, बेसहारा विधवाओं व बुजुर्गों को आश्रय के साथ उनके रहने, भोजन व स्वास्थ्य का पूर्ण ख्याल रखा जाता है. शिक्षा में बच्चों को वैदिक ज्ञान से लेकर वर्तमान शिक्षा के सभी पहलू पढ़ाए जाते हैं. स्वामी चिदात्म्नजी महाराज याद दिलाते हैं कि जगत जननी मां सीता का जन्म इसी मिथिला की पावन भूमि में हुआ था. वो राजा जनक की बेटी थी, इसके अलावा मिथिला धरती को भारत के कुछ महान ऋषिओं को जन्म देने का गौरव प्राप्त है. न्याय दर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि, वैशेशिक दर्शन के प्रवर्तक कणाढ, संख्या दर्शन के कपिल ऋषि, मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी सभी मिथिला भूमि के हैं. इनके अलावा प्रकांड विद्वान कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गंगेसौप्धाया और महान कवि विद्यापति इसी धरती के हैं। जिन्होंने संसार को अपने अलौकिक ज्ञान से परिचित करवाया. साथ ही आधुनिक युग के राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी इसी सिमरिया भूमि के पुत्र हुए.
स्वामी चिदात्म्नजी महाराज का मानना है की सिमरिया में कुम्भ की पुनर्स्थापना से हिंदू समाज में एक नया जोश उत्पन होगा. साधू संतों की वाणी पूरब में दूर-दूर तक फैलेगी. वैदिक परम्पराओं की जड़े और गहरी होंगी और देश की एकता अखंडता के साथ साथ राज्य का उद्धार होगा. कुम्भ के विभिन्न पहलुओं को हिंदू समाज दोबारा अपना रहा है. कुम्भ की महिमा को समाज अपना रहा है यानी कुम्भ सिर्फ 4 जगहों पर होने वाला कोई मेला नहीं है ये एक अलौकिक धरोहर है जिसे जन-जन तक पहुचना है.
कुंभ का आयोजन
कुम्भ देश-दुनिया के मौजूदा सभी आयोजनों से बड़ा आयोजन है. 12 साल में एक बार लगने वाला कुम्भ भारतवासियों के लिए ईश्वर की प्राप्ति जैसा है. साधुओं के सभी अखाड़े, साधु समाज की सभी शाखाएं, साकार और निराकार को मानने वाले संत, धार्मिक गुरुओं, तपस्वियों, भक्ति मार्गी, अघोरिओं, नागा साधुओं, और श्रद्धालुओं का दुनिया में ये सबसे बड़ा जमावड़ा होता है. आंकड़े बताते हैं कि अभी तक लगे अलग-अलग कुंभ मेलों में करोड़ों लोगों ने हिस्सा लिया जो अपने आप में एक रिकार्ड है. आस्था का इससे बड़ा और कोई प्रमाण पूरी दुनिया में नहीं मिलता है.
ज्योतिष के मुताबिक कुम्भ एक योग है. जिसमे खगोलीय रूप से जब सूर्य, चन्द्रमा और ब्रहस्पति एक राशि में आते है तो कुम्भ योग बनता है और इस खगोलीय अवस्था में गंगा में स्नान करने से एक इंसान को 12 साल के स्नान जितना यश मिलता है और भारत की अखंडता और परम्पराओं की रक्षा के लिए वैदिक काल में बारह राशियों के हिसाब से 12 जगहों पर पावन नदिओं के किनारे कुंभ का आयोजन होता था लेकिन, समय के साथ देश के चार स्थानों पर ही कुंभ की पंरपरा जीवित रह पायी और बाकी आठ स्थानों पर इसका लोप हो गया, अपने समय में सिमरिया प्रथम और सबसे महत्वपूर्ण कुंभ स्थली हुआ करती थी लेकिन कालांतर में यहा सिर्फ कल्पवास का मेला ही लगता रहा जिसे विद्वान कुंभ के अवशेष के रूप में देखते हैं.
सिमरिया में कुम्भ हुआ करता था इसकी प्रमाणिकता के लिए स्वामी चिदात्म्नजी महाराज ने विश्व प्रसिद्ध कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविधालय के विद्वत परिषद के सामने ये प्रश्न रखा. परिषद ने इस मुद्दे पर एक अहम बैठक की जिसमे ज्योतिष, वेद और पंचांग समेत कई विभागों के अध्यक्ष मौजूद थे. चर्चा में सर्व समिति से निर्णय लिया गया की सिमरिया ही आदि कुम्भ स्थली है और एक समय यहां कुम्भ की परंपरा थी. काशी विश्वविधालय के ज्योतिष विभाग ने भी सिमरिया कुम्भ को मानयता दे दी है.
कुंभ क्यों
दरसल कुम्भ एक ऐसा पर्व या मेला है जिसमे पूरा देश एक साथ आकर खड़ा हो जाता है. अलग-अलग प्रान्तों के लोग एक-दुसरे से मिलते हैं.संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता है. संत समाज अपने ज्ञान के आलोक से लोगों की समस्याओं को हल करते हैं, ईश्वर को खोजने के नए और पुराने रास्तों पर विचार होता है. भारत को अगर समझना है तो कुम्भ एक मात्र ऐसी खिडकी है जो एक झलक दिखाती है, क्योंकि हजारों साल की संस्कृति को कोई एक बार में समझ नहीं पायेगा. इसके लिए साधुओं को समझाना होगा. योग को समझाना होगा, ध्यान को समझाना होगा और एक कुम्भ सिर्फ चेतना जगा सकता है, लेकिन लगातार होने वाले कुम्भ लोगों को प्रेरित करेंगे अलोकिक की खोज के लिए, समाज शांति की और बढ़ेगा, नदियों का उद्धार होगा जोकि इंसानी गन्दगी और प्रदूषण के शिकार है, जीवन मूल्यों को नयी दिशा मिलेगी.
युवा वर्ग नए जोश से भरेगा क्योंकि हजारों-लाखों साल की संस्कृति को देखने के लिए भी ईश्वर का आशीर्वाद चाहिए. तपस्विओं का आशीर्वाद और विद्वानों से मार्ग-निर्देशन सिर्फ कुम्भ में ही मिल सकता है, जहां विचारों का मंथन होता है, जहां विज्ञान टकराता है विश्वास से, जहां बहस होती है प्रमाण और आस्था में. जहां वैज्ञानिक भी सर झुकाते हैं आस्था और भक्ति के सामने क्योंकि जो ज्ञान साधुओं है वो हमारे पास नहीं हैं, क्योंकि पश्चिम का जगत मान गया है की अगर गंगा न होती, हिंदू न होते और साधू न होते तो संसार में सिर्फ जानवर होते। इंसान न खोज पाता ब्रहमांड के रहस्य न सुलझते गणित के प्रश्न और न ही समझ आता वर्तमान न ही भविष्य, न मिलता जीने का सही तरीका, न समझ पाते प्रकृति को. कितना ज्ञान सिर्फ साधुओं के पास ही रह जाता अगर कुम्भ न होता और अंत में प्रणाम है उस महान संत को जिसने कुंभ की पुर्नस्थापना और देश के लुप्त हो चुके आठ कुंभ स्थलों के पुनर्जागरण का आह्वान किया है. कह सकते हैं कि जब तक देश में ऐसे संत और महर्षि रहेंगे तब तक देश की एकता अखंडता को खतरा नहीं हो सकता और देश अबाध गति से अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर होता रहेगा.
An Amazing Fair of Hindu Religion, This is a really very holly Kumbh Fair where everyone want to go and also want to bath in Ganga River.
ReplyDeleteबहुत सुंदर, जनतबसँ भरल, तथ्यपरक, सारगर्भित आलेख ।
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