मिथिला में देवी का जन्म

मिथिला की भूमि जानकी की भूमि के नाम से तो प्रसिद्ध है ही, लेकिन यह भी जानना कम रोचक नहीं कि मिथिला भूमि में देवी ने तीन बार अवतार लिया.


देवी सीता का जन्म

मिथिला की भूमि धन-धान्य संपन्न रही. एक बार राजा जनक के समय किसी के श्राप से वहां सूखा पड़ा. वर्षा की इच्छा से राजा जनक ने हलेष्टि यज्ञ किया.
वो हल चला रहे थे कि हल के नोक (जिसे सीता कहते हैं) से कुछ टकराया. देखने पर पता चला कि वह एक कलश है जिससे हीं मां सीता निकलीं. हल के नोक से टकरायीं तो सीता नाम पड़ा. जनक ने पुत्री माना तो जानकी कहलायीं.


देवी अहिल्या का शापोद्धार
देवी अहिल्या ऋषि गौतम की पत्नी थीं. एक बार इंद्र ने छल से उनका शीलहरण किया. ऋषि इतने क्रोधित हुए कि पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. लेकिन यह भी कहा कि भगवान श्रीराम के स्पर्श से मुक्ति मिलेगी.

कहते हैं- मिथिला आगमन के दौरान राम जब आज के दरभंगा में स्थित अहियारी या अहिल्या स्थान से गुजरे तो उन्होंने गुरू विश्वामित्र से पूछा -
आश्रम एक दीख मग माहीं।
खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी।
सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥


तब विश्वामित्र ने देवी अहिल्या की कथा सुनायी. साहित्यकार और सीता कथा मर्मज्ञ गोवा की वर्तमान राज्यपाल डॉ मृदुला सिन्हा कहती हैं- यह अहिल्या के साथ हुए अन्यान्य को समझते हुए उनका किया गया सम्मान है. अहिल्या को सम्मान देकर राम स्वयं रामत्व को प्राप्त करते हैं. यह स्थान मिथिला में ही है.


समुद्र मंथन से लक्ष्मी के रूप में
देवी ने मिथिला में तीसरी बार समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी के रूप में अवतार लिया. मिथिलांचल को समुद्र मंथन की केन्द्रीय भूमि मानते हैं. तब की भौगोलिक स्थिति के अनुसार क्षीर सागर यहीं हुआ करता था. क्षीर सागर में हुए मंथन से 14 रत्न निकले थे.
1.हलाहल (विष)
2. कामधेनु गाय
3. उच्चैःश्रवा घोड़ा
4. ऐरावत हाथी
5. कौस्तुभ मणि
6. कल्पद्रुम
8. लक्ष्मी
9. वारुणी (मदिरा)
10. चन्द्रमा
11. पारिजात वृक्ष
12. पांचजञ्य शंख
13. धन्वंतरि वैद्य और
14. अमृत 



यही कारण है कि मिथिला को देवी भूमि भी कहते हैं.
इसी मिथिलांचल के सिमरियाधाम में अक्टूबर-नवंबर-2017 को महाकुंभ का आयोजन हो रहा है.

(लेख और फोटो श्याम किशोर सहाय जी के फेसबुक वॉल से)

No comments:

Post a Comment